अमरपुर (बांका) : बांका जिले के ज्यादातर क्वॉरेंटाइन सेंटरों में रहने लायक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। फिर भी प्रवासी श्रमिकों को इन सेंटरों पर जैसे-तैसे रहना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय प्रवासी श्रमिकों को इन सेंटरों में रखने की वजह से उनके खाने-पीने का इंतजाम उनके अपने-अपने घरों से हो रहा है। ऐसे में क्वॉरेंटाइन शब्द की अवधारणा इस जिले में अर्थहीन होकर रह गई है।
बांका जिले के अमरपुर प्रखंड अंतर्गत चांदन नदी के तट पर स्थित मालदेवचक गांव के मध्य विद्यालय में बनाए गए क्वॉरेंटाइन सेंटर में तकरीबन 100 से ज्यादा प्रवासी श्रमिक पिछले डेढ़ सप्ताह से भी ज्यादा समय से रह रहे हैं। लेकिन वे किन स्थितियों में इस क्वॉरेंटाइन सेंटर में अपना समय बिता रहे हैं, यह उन प्रवासी श्रमिकों से ही सुनकर बेहतर महसूस किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि सेंटर में उनके सोने के लिए दरी चटाई तक की व्यवस्था नहीं है। भोजन का इंतजाम भी उन्हें स्वयं अपने अपने घरों से करना पड़ रहा है। गांवों से उनके घरों की महिलाएं या बच्चे भोजन लेकर क्वॉरेंटाइन सेंटर में आते हैं, जहां दिल्ली, पंजाब और नोएडा से लौटकर आए प्रवासी श्रमिक रह रहे हैं।
इस घालमेल की वजह से फिजिकल और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही है। कई प्रवासी श्रमिकों ने बताया कि उन्हें स्नान के लिए पास की नदी में जाना पड़ता है जहां आसपास के गांव के लोग भी स्नान करने या दूसरे काम के लिए वहां आते हैं।
इसी गांव के रहने वाले युवा शक्ति के जिलाध्यक्ष गौरव सिंह ने बताया कि मालदेवचक क्वॉरेंटाइन सेंटर में आसपास के पूरनचक, मालदेवचक, कल्याणपुर, चोकर और किशनपुर आदि गांवों के प्रवासी रहे हैं। उनके लिए खाने और सोने तक का कोई इंतजाम प्रशासन की ओर से नहीं किया गया है। जबकि इसके लिए सरकार की ओर से अलग से बजट का प्रावधान है। उन्होंने प्रशासन से अविलंब इन प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं पर ध्यान देने की मांग की है।