बांकाराजनीति

विधानसभा चुनाव : आयोग की दो टूक ने बढ़ायी बांका जिले में राजनीतिक सरगर्मी, सक्रिय हुए टिकटार्थी

Get Latest Update on Whatsapp

मनोज उपाध्याय/

कभी बांका जिले को चुनावी राजनीति की यूनिवर्सिटी कहा जाता था। इस ऐतिहासिक जिले के इस स्टेटस की पहचान खासतौर से 1973 से लेकर वर्ष 2000 तक परवान पर रही। हालांकि इसके बाद के दो दशकों में बांका की इस पहचान को ग्रहण लग गया। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि इसके पीछे यहां की राजनीति पर राष्ट्रीय दलों की बजाए क्षेत्रीय दलों का बढ़ता दबदबा ही मुख्य कारण रहा।

न सिर्फ लोकसभा चुनाव बल्कि विधानसभा चुनावों में भी क्षेत्रीय दलों और उनके छत्रपों का बोलबाला रहा। लिहाजा चुनावी राजनीति में कभी मधु लिमए, चंद्रशेखर सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, राज नारायण और दिग्विजय सिंह सरीखे बड़े नेताओं की वजह से दशकों तक राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम रखने वाले बांका जिले की राजनीतिक पहचान यहां से लेकर पटना तक सिमट कर रह गई।

हालांकि करीब पांच वर्षों तक बांका संसदीय क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव ने इस परंपरा को संजीवनी देने का प्रयास जरूर किया, लेकिन एक क्षेत्रीय दल का नेता होने की वजह से उनका यह प्रयास यहां के राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों की दृष्टि को बहुत आकर्षित नहीं कर सका।

विगत लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले और राष्ट्रीय स्तर पर चले मोदी तूफान की वजह से सारे समीकरण यहां भी ध्वस्त हो गए। नतीजा एक बार फिर क्षेत्रीय दल के हाथ लग गया। वैसे भी इस चुनाव में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी क्षेत्रीय दलों से ही थे। चुनाव का तीसरा कोण निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर बिहार प्रदेश भाजपा की पूर्व उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद पुतुल सिंह तय कर रही थीं। कुल मिलाकर यह चुनाव भी स्थानीय बनकर रह गया।

अब जबकि बिहार में विधानसभा चुनाव 2020 का बिगुल फूंक चुका है, इसकी गूंज बांका जिले में भी सुनाई पड़ने लगी है। खासकर विगत सप्ताह चुनाव आयोग द्वारा इस आशय की दो टूक घोषणा कि बिहार में विधानसभा चुनाव तयशुदा समय पर ही होंगे और इसके लिए उन्होंने अधिकारियों को तैयारियों के आवश्यक निर्देश भी दिए, बांका जिले में कोरोना संकट एवं लॉकडाउन की वजह से शिथिल पड़ गई राजनीतिक सरगर्मी की गर्माहट एकाएक एक बार फिर से काफी बढ़ गई है।

विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता अंदर-बाहर चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। वर्तमान जनप्रतिनिधि और भावी प्रत्याशी अपनी अपनी हैसियत जानने के लिए ‘तुमसे आप और आपसे हुजूर’ हो जाने का दंभ त्याग कर ‘जनता जनार्दन’ को साधने में लग गए है। सोशल मीडिया पर मिम्स वार चालू हो गया है। कई दल संगठन के स्तर पर बदलाव कर अपनी मौजूदा हैसियत में जान फूंकने की सार्थक-निरर्थक कोशिश कर रहे हैं।

इस चुनाव में अपना भाग्य आजमाने का सपना संजोए बैठे दर्जनों नए-पुराने स्थानीय नेता सपना पूरा करने के लिए टिकट प्राप्त करने की जुगत में बांका से लेकर पटना तक की दौड़ लगाने लगे हैं। कुछ जनता के समर्थन के बूते तो कुछ अपने राजनीतिक आकाओं की बदौलत अपना अपना सपना पूरा करने की कोशिश में लगे हैं। जिले में इस बार विभिन्न राजनीतिक दलों के स्थानीय नेताओं खासकर युवाओं में टिकट प्राप्त करने के लिए जुगाड़ लगाने की होड़ मची है। इन सबके बीच पांच वर्षों तक उपेक्षा का दंश झेलने वाली निरीह जनता मौके की नजाकत को शिद्दत से महसूस करते हुए जिले के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य का अवलोकन करते हुए मन ही मन मुदित हुई जा रही है।


Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button