बांका : उसने क्या जिया, जिसने कभी तारा मंदिर का पानी नहीं पिया..
बांका LIVE डेस्क : यह कोई मजाहिया बात नहीं बल्कि बांका शहर की एक सच्चाई है. कभी मीठे पेयजल के लिए प्रसिद्ध बांका शहर के आज ज्यादातर हिस्सों में पीने लायक शुद्ध पानी नहीं रह गया है. शहर के ही पश्चिमी छोर पर ओढ़नी नदी किनारे स्थित तारा मंदिर का पानी न जाने कौन-सी खूबी लेकर है कि यह दशकों से शहर वासियों के लिए अमृततुल्य बना हुआ है. बेहद स्वादिष्ट, पतला और मीठा पानी बांका शहर के बाबूटोला स्थित तारा मंदिर परिसर की विशिष्टता है. यही वजह है कि शायद ही शहर के कोई शख्स हों, जिन्होंने वहां का पानी न चखा हो.
अव्वल तो शहर की लगभग आधी आबादी इसी तारा मंदिर परिसर के चापाकलों से निकले पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं. यहां के पानी की खासियत है कि यह मिनरल वाटर को भी मात देता है. कभी इस परिसर में सिर्फ एक चापाकल था. वहां पानी लेने वालों के भारी दबाव की वजह से चापाकल कुछ ही महीनों बाद खराब हो गया. वहां से कुछ दूरी पर इसी परिसर में दूसरा चापाकल लगा, फिर तीसरा और अब चौथा. इस परिसर के तीन चापाकल अभी चालू हालत में हैं. परिसर के पूर्वी हिस्से वाले चापाकल से निकलने वाला पानी अलबत्ता अपेक्षाकृत कमतर मीठा है. लेकिन भीड़ वहां भी लगी रहती है.
परंतु परिसर के पूर्वी हिस्से में लगे दो चापाकलों पर सुबह से शाम तक पानी लेने वालों की कतार लगी रहती है. न सिर्फ बांका शहर के विभिन्न हिस्सों बल्कि आस-पास की बस्तियों से भी लोग स्वच्छ पेयजल लेने के लिए तारा मंदिर परिसर के चापाकल पर पहुंचते हैं. यहां का पानी जिले भर में प्रसिद्ध है. दूसरे जिलों में भी यहां के पानी की चर्चा होती है. यहां का पानी एक बार सेवन कर लेने के बाद लोग इसे छोड़ना नहीं चाहते. दूसरा पानी शायद उन्हें अच्छा नहीं लगता. यहां का पानी अमृत तुल्य है. शायद इसीलिए शहर में आम बोलचाल में लोग यह कहते हुए सुने जाते हैं कि..’अरे, उसने क्या जिया, जिसने कभी तारा मंदिर का पानी नहीं पिया!’