अलविदा चांदन पुल : लेकिन बांका के लोग जानते हैं कि क्यों असमय हमें छोड़ गये गए आप..!

मनोज उपाध्याय/ 

बांका की जीवन रेखा कहे जाने वाले चांदन पुल ने आज अंतिम सांस ली। पुल का बड़ा हिस्सा सर्पाकार में आज धंस गया। सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए निकले लोग जब चांदन पुल के आसपास टहल रहे थे तो पुल की इस दुर्दशा पर उनकी नजर पड़ी। 

देखते ही देखते यह खबर इस पार पूरे बांका शहर और उस पार के दर्जनों गांवों में दावानल की तरह फैल गई। बड़ी संख्या में लोग अंतिम विदाई देने चांदन पुल के समीप पहुंचे। हर किसी का दिल भरा हुआ था। लोग मानने को तैयार नहीं थे कि इस पुल के साथ ऐसा हो सकता है! 

इतनी भी जल्दी आखिर क्या थी! सिर्फ 22 वर्ष की ही तो उम्र थी इस पुल की! इसके जाने का वक्त नहीं था अभी। 100 साल तक जीने के लिए इसे बनाया गया था। आखिर किस मीठे जहर ने इसे तिल तिल कर मार दिया। किस की नजर लग गई इस को..! 

कहने की जरूरत नहीं कि हर कोई इन सवालों के उत्तर भी जान रहा था। लेकिन बावजूद सबका मन आज इन सवालों को जोर-जोर से दोहराने का कर रहा था। लोग दोहरा भी रहे थे, दोहरा भी रहे हैं इन सवालों को। 

लेकिन उस समय जब स्वयं यह पुल चीख चीख कर अपनी पीड़ा यहां के लोगों, नेताओं और जनप्रतिनिधियों को बता रहा था, तब हर कोई आखिर मौन क्यों था? यह सवाल भरभराते हुए अंतिम विदाई ले रहे चांदन पुल के मुरझाए हुए चेहरे पर भी स्पष्ट रेखांकित हो रहा था। 

व्यवस्था की काहिली, ठेका संस्कृति का लालच तत्व, राजनीतिक उपेक्षा और आम जनमानस की उदासीनता का दंश झेलते हुए फिर भी यह पुल 22 वर्षों तक जिया। लेकिन बगैर पुल के यहां के लोग किस प्रकार जी रहे हैं, यह देखने के लिए चांदन पुल की सांसें आज भी आसानी से बिखर नहीं रही थीं।

पुल को अंतिम विदाई देने पहुंचे लोगों की भावनाओं का सम्मान कर रहा था यह पुल, लेकिन उपयोग और दोहन की चक्की में पीसते हुए इस पुल की नाड़ी बेदम हुई जा रही थी। भरे मन और गीले नैन के साथ भर्राई आवाज में ही सही, आखिरकार चांदन पुल ने आज यहां के लोगों को कह ही दिया.. ‘अब नहीं आना मेरे पास’…!

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