बांका लाइव ब्यूरो : बिहार कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह नहीं रहे। बुधवार को पटना में उनका निधन हो गया। वह पिछले 2 माह से भी ज्यादा समय से बीमार थे। पटना के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। बिहार के भागलपुर जिला अंतर्गत कहलगांव से वह 9 बार विधानसभा सदस्य चुने गए थे। सदानंद सिंह इसी जिले के कहलगांव अनुमंडल में धुआवै गांव के रहने वाले थे।
बिहार के राजनीतिक महकमे से जुड़ी इस वक्त की यह सबसे बड़ी और दुखद खबर है। वर्ष 2020 तक कहलगांव से विधायक रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। इस खबर से राज्य भर के राजनीतिक महकमे में शोक की लहर है। बिहार में वह कांग्रेस के कद्दावर लीडर थे। सदानंद सिंह कांग्रेस शासनकाल में बिहार सरकार में मंत्री भी रहे।
भागलपुर के कहलगांव अनुमंडल अंतर्गत धुआवै गांव निवासी सदानंद सिंह कहलगांव क्षेत्र से 9 बार विधायक चुने गए थे। वर्ष 2020 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से अलग होने का निर्णय लिया। फिर भी कांग्रेस में अपनी कद्दावर राजनीतिक अहमियत के साथ वह जुड़े रहे। 2020 में उन्होंने बिहार विधानसभा के चुनाव में कहलगांव क्षेत्र से अपने पुत्र शुभानंद मुकेश को कांग्रेस से टिकट दिलवाया। हालांकि मुकेश इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के हाथों पराजित हो गए।
विधि स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त कांग्रेस नेता सदानंद सिंह की प्रारंभिक शिक्षा कहलगांव के शारदा पाठशाला से हुई थी। मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने इसी विद्यालय से पास की थी। 1969 में वे सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने वर्ष 1972 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक चुने गए। इसके बाद वह लगातार चार बार विधायक चुने जाते रहे। वह शुरू से अंत तक कांग्रेसी बने रहे। राष्ट्रीय हैसियत के कांग्रेसी नेता भागवत झा आजाद ने उन्हें कांग्रेस में लाया था।
हालांकि बाद के दो चुनावों में राजद प्रत्याशी महेश प्रसाद मंडल ने उन्हें पराजित कर दिया था। लेकिन दो बार चुनाव हारने के बाद उन्होंने पुनः अपनी जीत दर्ज की। एक बार उन्हें तत्कालीन जदयू प्रत्याशी अजय कुमार मंडल ने भी विधानसभा चुनाव में पराजित किया। अजय कुमार मंडल फिलहाल भागलपुर से जदयू सांसद हैं। इसके बाद हुए चुनाव में उन्होंने विधानसभा सीट से लगातार अपनी जीत जारी रखी। यह भी जानना जरूरी है कि एक बार कांग्रेस ने सदानंद सिंह को पार्टी का टिकट नहीं दिया था। फलस्वरुप वह निर्दलीय चुनाव लड़ गए और अपनी जीत दर्ज की। हालांकि चुनाव में अपनी जीत दर्ज करने के बाद वह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए थे।