BANKA : आखिर किस कुसूर के चलते नारकीय सड़क पर चलने को मजबूर हैं शहर के नागरिक!

बांका लाइव (नगर संवाददाता) : करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाने के बाद भी यदि यह सड़क आज भी ‘पानी-पानी’ है तो इसके लिए जिम्मेदार यह शहर नहीं, बल्कि वह सिस्टम है जिसकी लूट संस्कृति का खामियाजा आखिरकार यहां के निर्दोष नागरिकों को भरना पड़ रहा है। किस्सा बांका शहर के शिवाजी चौक- अलीगंज मार्ग का है जिस पर चलते हुए किसी को भी नरक के रास्ते चलने का क्रूरतम एहसास होता है।

शिवाजी चौक बांका शहर की सबसे बड़ी व्यावसायिक मंडी और बड़ा बाजार है। शहर के किसी नागरिक की रोजमर्रा की जरूरत शायद ही इस मंडी और बाजार में आए बगैर पूरी हो पाती हो। ऐसे में अपेक्षा यह की जाती है कि यह इलाका स्वच्छ और व्यवस्थित हो। लेकिन स्थिति ठीक इसके उलट है। पता नहीं क्यों, इस इलाके को उपेक्षा का ग्रहण लग गया है। इस मंडी और बाजार क्षेत्र की स्थिति नारकीय बनी हुई है।

सर्वाधिक खराब स्थिति अलीगंज रोड की है। जबकि मार्केट का करीब तीन चौथाई हिस्सा इसी क्षेत्र में और इसी रोड के इर्द-गिर्द कायम है। इस रोड को अंतरराज्यीय संथाल परगना रोड का दर्जा प्राप्त है। शहर के अलीगंज तक बाजार का हिस्सा पड़ता है जिसके आगे यह मार्ग लकड़ी कोला होते हुए जयपुर- मोहनपुर होकर देवघर- दुमका मुख्य मार्ग में मिल जाता है।

पिछले दो दशक से नेताओं और जनप्रतिनिधियों की ओर से इस मार्ग के कायाकल्प की बयान बहादुरी की रोचक कथाएं लगातार खबरों की सुर्खियां बनती रही हैं। इस मार्ग पर समय-समय पर निर्माण और जीर्णोद्धार के नाम पर अरबों रुपए व्यय किए जा चुके हैं। लेकिन आज भी इस मार्ग का उपयोग आपातकालीन स्थितियों में ही जैसे तैसे की जा सकती है। आम यातायात के लिए इस मार्ग का इस्तेमाल लोग भूल कर भी नहीं सोचते।

इस मार्ग की वर्तमान स्थिति की बानगी है बांका शहर में शिवाजी चौक से लेकर अलीगंज तक रोड की मौजूदा स्थिति। इस छोटी सी दूरी में रोड पर सैकड़ों छोटे-बड़े गड्ढे बने हैं जहां बूंदाबांदी होने पर भी तालाब का दृश्य कायम हो जाता है। शायद ही इस रोड से होकर गुजरने वाले लोग बिना गिरे पड़े अपने मुकाम तक पहुंच पाते हैं। शहर के वक्षस्थल पर स्थित इस छोटी सी सड़क का यह हाल है तो जिले में कस्बों और शहरों से होकर गुजरने वाली सड़कों की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

पहले यह सड़क ग्रामीण अभियंत्रण संगठन के अधीन थी जो बाद में लोक निर्माण सड़क विभाग के अधीन आ गई है। इसके बाद से ही जैसे इस मांग को लेकर नेताओं और जनप्रतिनिधियों के मुखारविंद से घोषणाओं और दावों की झड़ी लगी हुई है। लेकिन रोड की स्थिति जस की तस बनी हुई है। रोड की बदहाली की चिंता ना तो नगर प्रशासन को है और ना ही विभाग को। नेताओं और जनप्रतिनिधियों की तो बात ही करना बेमानी है। ऐसे में शहर की एक बड़ी आबादी और बाजार क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा इसी नारकीय सड़क को अपने दिनचर्या का हिस्सा मान लेने को विवश है।

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