इसे कहते हैं समय की ताकत! फर्ज कीजिए, किसी की 3 साल की बच्ची खो जाए और 3 वर्षों तक उसका कोई अता पता नहीं चले। एकाएक वह पिता के अंक और मां के आंचल में वापस लौट आए तो उस माता-पिता की खुशी की सीमा क्या होगी! यह अकल्पनीय कहानी बांका में चरितार्थ हुई है जहां 3 वर्ष पूर्व 3 साल की उम्र में खो गई एक बच्ची ईश्वर की कृपा से सकुशल अपने माता-पिता को मिल गई है।
बांका लाइव ब्यूरो : परिवार में बच्ची के वापस लौटते ही खुशी की मूसलाधार बारिश हो गयीहै। घर में दिवाली का माहौल कायम हो गया है। माता पिता और परिवार के लोग खुशी से विह्वल हो उठे हैं। आस-पड़ोस और समाज के लोगों के चेहरे तक पर मुस्कान तैर गई है। सब ईश्वर की अनुकंपा की तारीफ करते नहीं अघा रहे। हालांकि बच्ची के गुम होने के बाद के 3 वर्षों में उसके माता पिता और परिवार के लोगों ने क्या झेला होगा, यह सिर्फ वही बयां कर सकते हैं। हम तो सिर्फ यहां घटनाक्रम रेखांकित कर सकते हैं।
मामला यह है कि बांका जिला अंतर्गत अमरपुर प्रखंड के गढ़ैल गांव निवासी दिलीप दास करीब 3 वर्ष पूर्व अपने परिवार के साथ बांका शहर के विजयनगर स्थित अपनी बहन के घर आया था। किसी दिन दिलीप और उसकी पत्नी किसी काम से बाजार गए हुए थे। घर के सभी बच्चे जिनकी संख्या 7 थी, घर पर ही खेल रहे थे। लेकिन दिलीप दास और उसकी पत्नी जब वापस लौटे तो उनकी बच्ची नदारत थी जबकि बाकी के 6 बच्चे मौजूद थे।
उन्होंने और परिवार के अन्य लोगों ने शिद्दत से बच्ची की खोज की। लेकिन वह मिली नहीं। इस बीच दिलीप के ही गांव के लालू पासवान नामक व्यक्ति ने बच्ची को वापस ला देने के एवज में 10 हजार रुपए दिलीप दास से मांगे। दिलीप ने 8 हजार रुपये उसे दिए। लेकिन लालू पासवान बच्ची को नहीं ला सका। इस बारे में कहने पर लालू ने दिलीप को भदरिया पुल के पास अगले दिन बुलाया और उससे बच्ची को वापस लाने की कीमत के तौर पर उससे 50 हजार रुपये की मांग की। उसकी लालच बढ़ गई थी।
दिलीप को उस पर आशंका हुई और उसने इसे फिरौती मांगने के तौर पर लिया। उसे आशंका हुई कि लालू पासवान ने ही शायद उसकी बच्ची को अगवा करवाया है। तो इसकी सूचना उसने बांका पुलिस को दी। क्योंकि यह मामला बांका थाना में ही दर्ज था। पुलिस ने मामले की छानबीन की और लालू पासवान को गिरफ्तार कर लिया। लालू की गिरफ्तारी के बाद उसके सगे संबंधी और परिवार के लोग दिलीप दास को धमकी देने लगे। इसलिए लालू दास अपनी पत्नी के साथ रजौन प्रखंड में स्थित अपने ससुराल में जाकर रहने लगा।
इस बीच उसने और परिवार के लोगों ने बच्ची की खोज जारी रखी। लेकिन इसी बीच समय ने पलटी खाया और दिलीप दास के अच्छे दिन लौट आए। उसके ससुराल के एक परिजन ट्रेन से बख्तियारपुर से वापस लौट रहे थे। रास्ते में ट्रेन में ही एक बच्ची को भीख मांगते उसने देखा तो उसकी तस्वीर उतार ली। वह इत्मीनान हो गया कि यह दिलीप की ही बच्ची है जो 3 वर्ष पूर्व खो गई थी। उसने तस्वीर दिलीप दास को भेजी तो दिलीप दास ने खुद, अपनी पत्नी को और परिवार के लोगों को दिखाकर इत्मीनान किया कि यह उन्हीं की बच्ची है।
बच्ची की पहचान को लेकर जब पुष्टि हो रही थी तब इसी केस के सिलसिले में दिलीप दास कोर्ट में था। वहीं से उसने ट्रेन पर मौजूद अपने परिजन को बच्ची का पीछा करने का आग्रह किया। उक्त परिजन ने ऐसा किया भी और बच्ची का ठिकाना भागलपुर जिला अंतर्गत जगदीशपुर के आसपास बंजारों की एक अस्थाई बस्ती में स्थित एक नट परिवार में खोज लिया। बाद में पुलिस उनकी सूचना पर उक्त नट परिवार में पहुंची और बच्ची की तलाश की। इस परिवार के मुखिया बालेसर चौधरी ने भी आनाकानी नहीं की और बच्ची को पुलिस के हवाले कर दिया।
उसने पुलिस को बताया कि यह बच्ची 3 वर्ष पूर्व उसे सड़क पर रोती बिलखती मिली थी। उसका कोई दावेदार नहीं होने पर मानवता के तहत उसे अपने साथ रख कर उसका पालन पोषण किया। हालांकि बच्ची से भीख मंगवाने की बात से उसने इनकार किया। बच्ची को पुलिस ने बांका लाया जहां अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी दिनेश चंद्र श्रीवास्तव ने भी उससे पूछताछ की है। पुलिस के मुताबिक बच्ची का मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान करवाया जा रहा है। बच्ची के माता-पिता एवं 3 वर्षों तक उसे अपने साथ रखने वाले बालेसर चौधरी से भी कोर्ट में बयान करवाने की बात पुलिस ने कही है।