BIHAR : बांका में सजा मध्य प्रदेश के वनवासियों का लोखर बाजार, किफ़ायती दाम में मिल रहे जरूरत के सामान

बांका लाइव : बांका जिले के बाजार प्रवासी कारीगरों और व्यापारियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते जा रहे हैं। अपनी कला दक्षता और व्यापार कौशल को निखार देने के लिए प्रवासी कारीगरों और व्यापारियों के यहां आने तथा बाजार लगाने का सिलसिला कोई नया नहीं है। लेकिन हाल के वर्षों में इस सिलसिले में जो तेजी आई है उसने बांका के लोगों का भी इन बाजारों के प्रति झुकाव और आकर्षण बढ़ाया है।

अपनी दुकान का संचालन कर रही आदिवासी युवती

कभी पड़ोस के भागलपुर शहर में सर्दी के मौसम में घंटाघर चौक पर लगने वाला तिब्बती अर्थात लहासा बाजार इस क्षेत्र में आकर्षण और चर्चा का विषय होता था। न सिर्फ भागलपुर शहर और आसपास बल्कि बांका जिले के लोग भी उक्त बाजार में गर्म कपड़ों की खरीदारी के लिए बड़े पैमाने पर पहुंचते थे। इन प्रवासी बाजारों में किफायती दामों में बेहतर गर्म कपड़े उपलब्ध होने की वजह से लोगों में यह सौदा काफी लोकप्रिय था और अब भी है।

लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बांका में ही सर्दी के मौसम में तिब्बती बाजार सज जाते हैं। अन्य दिनों में भी प्रवासी व्यापारी यहां कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक सामानों और घरेलू जरूरत के अन्य उपकरणों की दुकानें लगा कर अच्छा खासा कारोबार कर लेते हैं। इनमें बड़े पैमाने पर कारीगर भी शामिल होते हैं जो स्थानीय स्तर पर उपकरण निर्माण कर उनका कारोबार करते हैं और लोग शौक से उनकी खरीद भी करते हैं।

अभी कुछ वर्षों से बांका में मेवाड़ की जिलेबी और गर्मी के दिनों में चलने वाले मेवाड़ का फालूदा तथा शरबत यहां के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे। समय-समय पर उत्तर प्रदेश के वस्त्र शिल्पियों के भी बाजार बांका में हैंडलूम कपड़ों के मीना बाजार के रूप में लगते रहे हैं। इन कपड़ों का भी यहां बड़े पैमाने पर कारोबार चलता है। प्रसंगवश अभी के मौसम में एक खास पहलू यह है कि पिछले करीब 10 दिनों से यहां मध्य प्रदेश के आदिवासियों का लोखर यानी लोहे के उपकरणों का बाजार सजा है। यहां आम घरेलू जरूरतों के आवश्यक सामान मिल रहे हैं।

बांका शहर के गांधी चौक के निकट गर्ल्स स्कूल के आगे कटोरिया रोड में मध्य प्रदेश के आदिवासियों का लोखर बाजार सजा है। फिलहाल इस बाजार का संचालन एक ही समाज का चार परिवार मिलकर कर रहा है। इन्हीं में से एक परिवार का मुखिया जगदीश बांका लाइव को बताता है कि वे लोग मध्य प्रदेश के गुना जिले से हैं और पुश्तैनी लोहा कारीगर हैं। वे लोग ऐसे ही अपने गांव घर से दूर जाकर किसी इलाके में कैंप लगाते हैं और मौके पर ही लोहे के घरेलू एवं कृषि उपकरण बनाकर किलो के भाव से बेचते हैं।

उनका दावा है कि उनके बनाए सामान काफी ठोस और मजबूत होते हैं क्योंकि उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले लोहे वे काफी ठोक बजाकर खरीदते और उनसे निर्माण करते हैं। उनके दावे के मुताबिक कच्चे माल की खरीद वे कबाड़ से करते हैं। आदिवासी कारीगरों का यह समूह सड़क किनारे ही अपनी रातें बिताता है। सड़क किनारे ही खाना बनाने से लेकर उपकरण निर्माण तक का काम भी उनका रात दिन जारी रहता है। आधी रात से ही उनकी लोहे की कुटाई पिटाई शुरू हो जाती है। दिन भर यह सिलसिला चलता है जो देर रात तक जारी रहता है। इस दौरान खरीदने वाले और देखने वाले उनकी दुकानों के आगे तांता लगाए रखते हैं।

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