अरबों रुपए बहे पानी की तरह, पर नहीं हो रहा सरकारी भवनों का उपयोग
बांका LIVE डेस्क : पिछले दो दशक के दौरान बांका सहित जिले भर में बेहिसाब सरकारी भवन बने. इनके नाम पर अरबों की राशि भी खर्च हुई, पर इनकी उपयोगिता सिद्ध नहीं हो सकी. इन भवनों के निर्माण के नाम पर खर्च की गयी बेहिसाब राशि मानो पानी में बह गयी. इनमें से ज्यादातर भवन अब जीर्ण-शीर्ण हालत में यों ही बेकार पड़े हैं या फिर उनका अनावश्यक और अन्यथा इस्तेमाल हो रहा है. एक तरफ भवनों के निर्माण पर जिले में सरकारी राशि के दुरुपयोग का यह हाल है, दूसरी तरफ जिले के अनेक सरकारी दफ्तर निजी और किराए के भवनों में चल रहे हैं. या फिर उनका संचालन किसी अन्य स्कूल, कार्यालय या सार्वजनिक भवन में हो रहा है. स्थिति यह है कि जिले में डीएम और एसपी के रहने के लिए सरकारी आवास तक नहीं बन पाये हैं. जिले में ऐसे अनुपयोगी भवनों की संख्या दर्जनों में नहीं बल्कि सैकड़ों में है. सिर्फ जिला मुख्यालय में ऐसे दर्जनों भवन हैं, जिनका निर्माण तो किसी और मकसद से हुआ लेकिन या तो इनका दूसरे मसरफ़ में इस्तेमाल हुआ या फिर कोई इस्तेमाल ही नहीं हुआ. मतलब यह कि ये भवन पूरी तरह अनुपयोगी होकर रह गये. यह सिलसिला यहां पिछले दो दशकों से जारी है. प्रशासन के उच्चाधिकारी की बात तो दूर जिले के जनप्रतिनिधि भी इस से बेखबर बने हुए हैं. जबकि सब कुछ उनकी आंखों के सामने चल रहा है.
बेकार पड़े हैं ये आलीशान सरकारी भवन
जिला मुख्यालय में समाहरणालय परिसर स्थित जिलाधिकारी आवास, अनुमंडल कार्यालय परिसर स्थित ब्लड बैंक, रिकॉर्ड रूम, पुराना अस्पताल परिसर में एएनएम प्रशिक्षण स्कूल, जेनेरिक दवा स्टोर, अतिरिक्त वार्ड भवन, ब्लड बैंक भवन, आरएमके स्कूल परिसर स्थित अति पिछड़ी जाति छात्रावास, पीबीएस कॉलेज का सामान्य एवं अल्पसंख्यक छात्रावास, कुंवर सिंह पार्क के सामने बिरसा मुंडा रैन बसेरा, शहर के अनेक रिक्शा पड़ाव आदि करोड़ों की लागत से बने ऐसे भवनों के उदाहरण है जो अपनी उपयोगिता सिद्ध नहीं कर सके. सिरामिक काम्प्लेक्स, कर्पूरी छात्रावास, जननायक स्मृति भवन आदि भी इसी तरह के भवनों के उदाहरण हैं. दूसरी तरफ पुराने भवन एवं परिसर रख-रखाव के अभाव में ध्वस्त हो गए. आरएमके स्कूल परिसर स्थित गांधी एवं नेहरू छात्रावास, पीबीएस कॉलेज परिसर स्थित कल्याण छात्रावास, पुराना अस्पताल परिसर आदि इस श्रेणी के उदाहरण हैं.
जारी है शिलान्यास और निर्माण का सिलसिला
इन सबके बावजूद यहां नये भवनों के निर्माण का सिलसिला रुक नहीं रहा. सदर अस्पताल परिसर से लेकर आरएमके मैदान, रैन बसेरा, डाइट परिसर, समाहरणालय परिसर तथा अनुमंडल कार्यालय परिसर हर तरफ भवनों के शिलान्यास और निर्माण का दौर जारी है. यह सब क्यों और किस लिए किये जा रहे हैं, यहां के लोग बखूबी समझ रहे हैं. लेकिन आम लोगों के हाथ में कुछ भी नहीं है. शायद इसीलिए वे चुप्पी साध रखने में ही अपनी भलाई समझते हैं.
अनाधिकृत कब्जे के शिकार हैं ये भवन
आम थके- मांदे गरीबों के विश्राम के लिए शहर में बने बिरसा मुंडा रैन बसेरा में जिला परिषद कार्यालय चल रहा था. अब जिला नियोजन केंद्र ने इसे हथिया लिया है. रिकॉर्ड रूम में रेलवे आरक्षण केंद्र चल रहा है. एएनएम ट्रेनिंग सेंटर में आरक्षियों का बसेरा है. जबकि जेनेरिक दवा स्टोर बंद पड़ा है. अतिरिक्त रोगी वार्ड में दवा स्टोर चल रहा है. ब्लड बैंक भवन कबाड़खाना बना हुआ है. जबकि दूसरा ब्लड बैंक भवन बनकर तैयार ही नहीं हो सका. पिछड़ा वर्ग छात्रावास में सुरक्षाकर्मी रह रहे हैं. कॉलेज के नियमित छात्रावास में अर्धसैनिक बल, तो अल्पसंख्यक छात्रावास में केंद्रीय विद्यालय चल रहा है. ट्राइसेम भवन में उप विकास आयुक्त का निवास है तो सड़क निर्माण विभाग के निरीक्षण भवन में जिलाधिकारी और आरक्षी अधीक्षक जिला परिषद के निरीक्षण भवन में रह रहे हैं. बालिका मध्य विद्यालय में जिला शिक्षा कार्यालय चल रहा है तो बीआरसी कार्यालय में होमगार्ड का कार्यालय. ये कुछ उदाहरण हैं जिला मुख्यालय के. जिले भर में यह स्थिति आम है.