बांका लाइव (चुनाव डेस्क) : बिहार विधान सभा चुनाव को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता अब पूरी तरह इलेक्शन मोड में है। इधर जनता के लिए चुनाव पूर्व का यह दौर किसी लोक पर्व के ‘नहाय खाय’ की तरह है। जनता में भी चुनाव को लेकर उत्सुकता और उत्साह तो बहुत है, लेकिन पर्व के भावी उपवास सत्र की कठिन परिस्थितियों को लेकर उनके बीच संशय भी कायम है।

इस बात में कोई शक नहीं की जनता भी अब इस चीज को बखूबी समझने लगी है कि चुनाव का यह दौर उनके लिए ‘नहाय खाय’ के आयोजन से ज्यादा कुछ नहीं। उन्हें तकलीफ इस बात की है कि महज कुछ सप्ताह के इस ‘नहाय खाय’ अनुष्ठान के बाद उनके जनप्रतिनिधि एवं उनसे बनने वाली सरकार उनके लिए अगले पौने 5 वर्षों के लिए उपेक्षा, जिल्लत और वादाखिलाफी के साथ आकांक्षा और अपेक्षाओं के उपवास की ही परीक्षा लेने वाली है!
बहरहाल इन सब बातों को जानते समझते हुए भी जनता चुनावी चहल-पहल को लेकर आनंद की मुद्रा में है। उनके इस चुनावी ‘नहाय खाय’ पर्व के बीच वर्तमान जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ विभिन्न दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं की साधना का ‘अठपहरा’ शुरू हो चुका है। टिकट प्राप्ति से लेकर चुनाव लड़ने तक के कठिन सफर की उनकी यह साधना भी कम दुष्कर नहीं होती। और शायद यही विडंबना जनता को उनके पौने 5 वर्षों तक दुखती रगों के लिए मरहम का काम कर देती है।
इस बीच, गांव, कस्बे, शहरों, गलियों और मोहल्लों में चल रही चुनावी चर्चा के बीच जिले के सभी 5 विधानसभा चुनाव क्षेत्रों के नेताओं और कार्यकर्ताओं का वर्तमान दंगल तो पटना में चल रहा है, जहां उनके बीच टिकट प्राप्ति को लेकर घमासान मचा है। जिले के ज्यादातर टिकट पिपासु नेता और कार्यकर्ता पटना में टिके हैं। अपने राजनीतिक आकाओं और संरक्षकों के साथ उनकी सुबह और शाम हो रही है। इस दंगल में सबको अपनी जीत की उम्मीद है। लेकिन जीत किस- किस के हाथ लगेगी, यह तो आगे की बात है।
क्षेत्र में चुनावी दंगल तो बाद में होना है। इससे पहले एक और दंगल पटना में सजा है, जहां मुखारविंद से लेकर पैरवीकारबिंद तक अपने अपने जुगाड़ में लगे हैं। किन्हें क्या मिलता है, यह तो समय तय करेगा, लेकिन जो वर्तमान स्थिति है उसने बांका जिले के सभी 5 विधानसभा क्षेत्रों में जनता के बीच चुनावी चर्चा के लिए फिलहाल अवसर मुहैया करा दी है। नेता और कार्यकर्ता टिकट के लिए पटना में सत्याग्रह, संपर्क, पैरवी और लानत मलामत में व्यस्त हैं।
इधर जिन्हें चुनाव नहीं लड़ना और वे किसी काम की चीज हैं, उन्होंने उस मौलिक काम को अलमारी में बंद कर शिलान्यास, उद्घाटन, दौरा, जनसंपर्क, आश्वासन (!) और उपलब्धियों (?) के प्रचार प्रसार में अपनी व्यस्तता बढ़ा ली है। सोशल मीडिया पर ऐसे ‘बयान वीर’ नेताओं और कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ गई है, जो कभी वर्चुअल मीडिया की इस विधा का नाम सुनते ही नाक भौं सिकोड़ लेते थे।