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औपचारिक ही सही, आखिरकार पूरी की गई भगवान मधुसूदन की रथयात्रा

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बांका लाइव ब्यूरो : औपचारिक ही सही, लेकिन आखिरकार पूरी की गई भगवान मधुसूदन की रथयात्रा की ऐतिहासिक परंपरा। मंगलवार को एक ओर जहां पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत शर्तों के अधीन निकाली जा रही थी, वहीं दूसरी ओर बांका जिले के मंदार अंचल में स्थित सुप्रसिद्ध भगवान मधुसूदन मंदिर में रथयात्रा को लेकर दिनभर असमंजस की स्थिति बनी रही।

दोपहर बाद तक इस बात को लेकर मंथन होता रहा कि आखिर कैसे भगवान मधुसूदन की रथयात्रा की 515 वर्ष पुरानी परंपरा को अक्षुण्ण रखा जाए। जबकि कोरोना संकट को देखते हुए प्रशासनिक स्तर पर रथयात्रा के आयोजन पर औपचारिक रोक लगी थी। मंदिर के पुजारियों और प्रबंधन समिति के बीच गहरे मंथन के बाद आखिरकार इस बात का निश्चय हुआ कि प्रशासन के निर्देशों का अक्षरसः पालन करते हुए औपचारिक ही सही रथयात्रा की परंपरा का निर्वहन हो।

इस निर्णय के साथ ही स्थानीय श्रद्धालुओं में हर्ष की लहर दौड़ गई। निर्णय की खबर पूरे बौंसी कस्बे में दावानल की तरह फैल गई। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर परिसर में पहुंचे। हालांकि स्वयंसेवकों ने उन्हें हर संभव फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन एवं मास्क का उपयोग करने की हिदायत की।

मंगलवार को शाम होने से ठीक पहले रथयात्रा की औपचारिकता पूरी करने के लिए तैयारी पूरी की गई। भगवान मधुसूदन को रथ पर आसीन किया गया और मंदिर परिसर में ही श्रद्धालुओं ने रथ का परिचालन कर भगवान मधुसूदन की रथयात्रा की 515 वर्ष की ऐतिहासिक परंपरा को कायम रखने में सफलता प्राप्त की।

आखिरकार रथयात्रा की परंपरा अक्षुण्ण तो रह गई, लेकिन कई अर्थों में यह आयोजन पारंपरिक नहीं रह पाया। रथयात्रा मंदिर परिसर तक ही सीमित रही। जबकि पारंपरिक रूप से रथ को बौंसी बाजार तक ले जाया जाता था। बिहार और झारखंड के अनेक जिलों से हजारों की तादाद में श्रद्धालु जुटते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। रथ यात्रा के अवसर पर इस बार मेला भी नहीं लग सका। फिर भी श्रद्धालुओं ने राहत की सांस ली कि आखिरकार भगवान मधुसूदन की रथयात्रा की ऐतिहासिक परंपरा की औपचारिकता ही सही, पूरी कर ली गई।


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