बांकाबिहार

चांदन डायवर्सन : ‘खिलते हैं गुल, खिल के बिखरने को’, लेकिन गुल तो खिलने से पहले ही बिखर गया यहां..

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‘खिलते हैं गुल यहां, खिल के बिखरने को’… एक हिंदी फिल्म का यह प्रसिद्ध गाना बांका जिले की नियति पर तकरीबन सटीक बैठता है। यहां बिखरने से पहले गुल खिलते नहीं बल्कि खिलने से पहले ही बिखर जाते हैं! शनिवार की सुबह से ही यहां हंगामा मचा है… ‘चांदन नदी का डायवर्सन बह गया’..! लेकिन कौन सा डायवर्सन? अभी अभी तो चांदन नदी पर डायवर्सन निर्माण के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी हुई है। निर्माण का काम अभी शुरू भी नहीं हुआ। …तो फिर जो बहा, वह कौन सा डायवर्सन है? आइए, हम बताते हैं इसके बारे में आपको डिटेल से..

Banka Live Desk : करीब दो वर्ष पूर्व चांदन नदी पर बना पुल ध्वस्त हुआ तो यहां राजनीतिक गलियारे से जुड़े महानुभावों और जनप्रतिनिधियों की बयानबाजी शुरू हो गई.. एक महीने में बनकर तैयार हो जाएगा पुल तो तीन महीने में बन जाएगा पुल.. बस अब लगने ही वाला है काम.. जल्द ही चांदन पुल का निर्माण पूरा हो जाएगा..आदि- आदि। तब लगा जैसे आजकल में पुल बनकर तैयार हो जाएगा। लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी। चांदन पुल जब ध्वस्त हुआ था, तब विधानसभा चुनाव भी सामने था।

लिहाजा चांदन नदी पर टेढ़े मेढ़े और जैसे तैसे एक अस्थाई लीक का निर्माण किया गया, जिसे डायवर्सन का नाम दिया गया। तब चुनावी माहौल को देखते हुए राजनीतिक तामझाम के साथ इसका उद्घाटन भी किया गया। इसी दौर में चांदन पुल के नव निर्माण की आधारशिला भी रखी गई। यह कथित डायवर्सन बनकर जब तैयार हुआ और इसे चालू किया गया तो अगले ही दिन पानी में बह गया। फिर जैसे तैसे इसकी मरम्मत करा कर इसे आने जाने लायक बनाया गया। विधानसभा चुनाव में इस डायवर्सन की उपयोगिता सिद्ध हुई।

इस डायवर्सन के निर्माण में भी करोड़ों रुपए लगे। लेकिन इसका समग्र लाभ बांका और आसपास के जिले के लोग नहीं उठा पाए। इस होकर बड़े वाहनों का आना-जाना निषिद्ध रहा। बड़े वाहनों के आवागमन पर रोक के लिए डायवर्सन के दोनों ओर बैरियर लगा दिए गए। सिर्फ छोटी गाड़ियों, पैदल और बाइक के लिए यह डायवर्सन उपयोगी रहा। फिर भी लोगों को बहुत सहूलियत हुई। चांदन पुल का निर्माण फिर भी नहीं हो सका। करीब दो वर्षों बाद चांदन पुल के निर्माण के लिए टेंडर की प्रक्रिया हाल ही में पूरी हुई है। निर्माण कार्य शुरू करने के नाम पर चांदन पुल के पुराने स्ट्रक्चर को काटकर हटाने का काम जैसे तैसे शुरू किया गया है। हालांकि यह काम भी बेहद शिथिल गति से चल रहा है।

इसी बीच बारिश का मौसम शुरू हो गया। मानसून की दस्तक के साथ ही चांदन डैम में 5 से 8 इंच तक पानी स्पील करने लगा। विशेषज्ञों ने आशंका व्यक्त की कि यदि चांदन डैम में एक फीट भी पानी स्पील करता है तो इस डायवर्शन को खतरा उत्पन्न हो सकता है। इस बीच खेती किसानी के लिए नहरों में पानी छोड़ा जाने लगा तो डैम में पानी का दबाव कम हुआ। पानी स्पील होना बंद हुआ तो डायवर्सन की जान बची। लेकिन पिछले दो-तीन दिनों की बारिश ने एक बार फिर इस के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। नदी में पानी का दबाव बढ़ा और आखिरकार शनिवार की सुबह वही हुआ जिसकी लोगों को आशंका थी। शनिवार को सुबह-सबह इस होकर आने जाने वाले लोगों ने डायवर्सन को करीब 100 मीटर की लंबाई में कटा पाया।

अब इस डायवर्सन के बह जाने के बाद बांका से ढाकामोड़ होकर कहीं आने जाने का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया है। इससे बांका जिला एक बार फिर से दो भागों में बांट कर रह गया है। अब बांका जिले की लगभग 40 फ़ीसदी आबादी को जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए 25 से 30 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ेगी। वह भी जैसे तैसे कूदते फांदते उन्हें बांका जिला मुख्यालय तक पहुंचना होगा। इधर बांका जिले के पश्चिमी हिस्से में बसने वाली तकरीबन 60 फ़ीसदी आबादी को जिले के पूर्वी हिस्से के चार प्रखंडों और सीमावर्ती झारखंड के गोड्डा एवं दुमका आदि जिलों की ओर जाने के लिए भी यही परेशानी उठानी पड़ेगी। यह स्थिति कब तक बनी रहेगी, कहा नहीं जा सकता!


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