चांदन पुल : टूटा कैसे? पहले यह जिम्मेदारी तो तय हो, या सिर्फ श्रेय लेने की होड़..!
बांका लाइव डेस्क : चांदन पुल टूटा कैसे? पहले यह जिम्मेदारी तो तय हो.. या फिर इसके पुनर्निर्माण का रास्ता साफ करवाने का श्रेय लेने की होड़ ही मची रहेगी? दरअसल बांका के आम अवाम में इन दिनों चिंतन मंथन का खास विषय यही है।
तीन दिन पूर्व बांका का सुप्रसिद्ध चांदन पुल पैदल चलने लायक भी नहीं रह गया। यह बांका जिले की लाइफ लाइन है। इसके ध्वस्त हो जाने से बांका जिला दो हिस्सों में बट गया है और दोनों ही हिस्सों का संपर्क एक दूसरे से भंग हो गया है। यह स्थिति कब तक बनी रहेगी, इसे लेकर जिले के लोगों में संशय की स्थिति कायम है।
इस महत्वपूर्ण पुल के टूटने का सिलसिला वर्ष 1996 में इसके निर्माण के साथ ही शुरू हो गया था। तब यहां के किसी नेता या जनप्रतिनिधि ने इसकी नोटिस नहीं ली। उल्टा तब वे इस पुल को बनाने वाली निर्माण एजेंसी की तारीफ करते नहीं थक रहे थे, इसकी कथित गुणवत्ता को लेकर!
इधर, विगत जनवरी माह में पुल के कई पाए एक साथ चरमरा गए तो उन्हीं नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने बजाय इसकी जांच की मांग करने के, इसके लिए बालू के उठाव, नदी के बेतरतीब उत्खनन एवं ओवरलोड ट्रैफिक को जिम्मेदार ठहरा दिया।
अब 3 दिन पूर्व पुल का एक हिस्सा हवा में झूल गया तो प्रशासन ने इस पर से होकर पैदल चलने पर भी रोक लगा दी। इस नई स्थिति में जिले का एक बड़ा हिस्सा मुख्यालय से कट गया। अब बारिश का मौसम शुरू होने वाला है तो लोग भी आने वाले महीनों में आवागमन की होने वाली समस्याओं को लेकर त्राहिमाम कर रहे हैं।
बहरहाल, पुल या सामान्य आवाजाही के लिए डायवर्सन कब बनेगा, यह तो अभी अनिश्चय के गर्भ में है, लेकिन उन्हीं कतिपय नेताओं और जनप्रतिनिधियों में इस बात का श्रेय लेने की होड़ मची है कि सिर्फ और सिर्फ वही बांकावासियों के हित में इस पुल के नव निर्माण के लिए चिंतित और प्रयत्नशील हैं।
बजाय यहां के लोगों को इस बात का जवाब देने के कि आखिर क्यों निर्माण के सिर्फ ढाई दशक में यह पुल ध्वस्त हो गया? कौन है इस पुल के घटिया निर्माण के लिए जिम्मेदार? उस वक्त उन्होंने क्या किया जब पुल को जैसे-तैसे घटिया स्तर पर बनाया जा रहा था? तब इसकी जांच क्यों नहीं हुई? आज भी इस पुल के सिर्फ ढाई दशक में ध्वस्त हो जाने के मामले की जांच क्यों ना हो? …नेता और जनप्रतिनिधि दनादन दावे करने की होड़ में लगे हैं कि चांदन नदी पर नए पुल के निर्माण का रास्ता उन्होंने साफ करा दिया है।
कुछ तो यहां तक दावे कर रहे कि अब इस पुल निर्माण के लिए सिर्फ टेंडर की प्रक्रिया बाकी है.. जून में ही टेंडर होगा और जुलाई में निर्माण शुरू.. निर्माण की लागत 27.5 करोड़ होगी.. आदि-आदि! बस यही से संदेह की बदली यहां के लोगों की उम्मीदों को अंधेरे में बदल रही है और तमाम तरह के सवालों पर आम आवाम के चिंतन मंथन का दौर भी यहीं से शुरू होता है।
उनके इन दावों पर कुछ लोग मुस्कुरा रहे तो कुछ हंस भी रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं कि पहले ये नेता और जनप्रतिनिधि इस बात का जवाब दें कि पुल सिर्फ ढाई दशक में टूटा कैसे? करोड़ों के टोल टैक्स वसूली के बाद भी इसका समुचित रखरखाव क्यों नहीं हुआ? कौन है जिम्मेदार? किसने लूट मचाई? किसे लूटा गया और कौन अमीर हुआ? नेता और जनप्रतिनिधियों ने क्या किया इस संदर्भ में??
दरअसल, यहां के लोग अपने नेताओं और जनप्रतिनिधियों को भी खूब जानते पहचानते हैं। किसी की सच्चाई और हकीकत किसी से छिपी नहीं। लोग जानते हैं कि पुल को लेकर घपला और गड़बड़ी कहां हुई। सो अपने नेताओं और जनप्रतिनिधियों के दावों और श्रेय लेने की भूख पर आम आवाम की तरस बहुत अस्वाभाविक भी नहीं है!
बांका जिला मुख्यालय को जोड़ने वाला पुल आज जर्जर हो चुका है और इसकी मरम्मत का कार्य शुरू नहीं हो पाया है जबकि माननीय सांसद ने इसकी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर दी थी। बांका जिले के चांदन नदी पर एक नया पुल बनाया जाना बेहद जरूरी है और यह पुल निश्चित तौर पर विकास की रफ्तार को गति प्रदान करेगा। साथ ही साथ इसकी मरम्मत, देखभाल की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जाए। आशा करता हूं कि बिहार सरकार नए पुल के निर्माण को शीघ्र स्वीकृति प्रदान करेगा।
धन्यवाद्
Lockdown khulne ke bad student school Kaise jayenge,
Ye bhi bahut bara sawal hai..