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दुर्लभ संयोग : 148 वर्षों बाद 10 जून को सूर्य ग्रहण एवं भगवान शनिदेव की जयंती एक साथ

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बांका लाइव ब्यूरो : धर्म और अध्यात्म हमारे सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। हम धर्म और अध्यात्म मानते हैं, इसलिए शास्त्रीय व्यवस्था एवं ज्योतिषीय गणना को भी मानते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कई वैज्ञानिक एवं खगोलीय घटनाक्रमों के पीछे ज्योतिषीय कारण होते हैं। ज्योतिष में उनकी गणना के फलादेश होते हैं जिन्हें हम जाने या अनजाने महसूस और अनुभव भी करते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

बेशक, ग्रहण एक खगोलीय घटनाक्रम है, लेकिन इसकी ज्योतिषीय गणना के फलादेश भी धर्म और अध्यात्म के बीच सांस्कृतिक जीवन जीने वाले लोगों के अनुभव का हिस्सा होते हैं। एस्ट्रोलॉजिकल काउंट हमें बहुत कुछ अग्रिम बता जाते हैं। 10 जून को होने वाले वर्ष 2021 के पहले सूर्य ग्रहण को लेकर ऐसे ही एस्ट्रोलॉजिकल काउंट ने कई सारी भविष्यवाणियां की हैं।

इस बार 10 जून को ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को सूर्य ग्रहण लग रहा है। यह इस साल का पहला सूर्य ग्रहण है। सूर्यग्हण दुनिया के कई हिस्सों में देखा जा सकेगा। इस दिन सूर्य ग्रहण के साथ एक विशिष्ट संयोग भी बन रहा है। इसी तिथि पर सूर्यपुत्र भगवान शनि देव की जयंती भी मनाई जाती है। फलस्वरूप, इस बार सूर्य ग्रहण का महत्व काफी बढ़ गया है। इसके फलादेश का दायरा भी काफी बढ़ गया है।

ज्योतिषीय गणना के मुताबिक एक तरफ पिता सूर्य देव ग्रहण के साए में रहेंगे तो उसी वक्त पुत्र शनि देव की जयंती मनाई जा रही होगी। इस बार शनि जयंती पर लगने वाला सूर्य ग्रहण वलयाकार ग्रहण होगा, जिसमें सूर्य की आकृति एक चमकदार अंगूठी के रूप में दिखाई पड़ेगी। सूर्यग्रहण और शनि जयंती साथ-साथ होने के अतिरिक्त इस दिन शनि देव भी मकर राशि में वक्री रहेंगे। इस तरह का संयोग 148 वर्षों के बाद लग रहा है। इससे पहले यह संयोग 26 मई 1873 में लगा था।

वैसे, 10 जून को लग रहा सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। फलस्वरूप यहां सूतक काल की मान्यता नहीं रहेगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूतक काल वही मान्य होता है जहां ग्रहण दृश्य होता है। इसलिए सूर्य ग्रहण में न तो मंदिर के कपाट बंद होंगे और ना ही पूजा आराधना। खास बात यह भी कि साल का यह दूसरा ग्रहण है जो वृषभ राशि और मृगशिरा नक्षत्र में लगेगा।


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