मनोज उपाध्याय :
नमस्कार! मैं एक सर्वे एजेंसी से बोल रहा हूं। बिहार विधानसभा चुनाव में अगर आप वर्तमान एमएलए को वोट देना चाहते हैं, तो बीप के बाद एक दबाएं। अगर आप वर्तमान एमएलए की जगह किसी और को वोट देना चाहते हैं तो बीप के बाद 2 दबाएं…..! (आवाज बंद.. कॉल डिस्कनेक्ट)…बीssssप……
मंगलवार को अपराहन ठीक 4:06 पर कॉल आता है। रिसीव करते ही एक पुरुष की आवाज गूंजती है और ताबड़तोड़ एक ही सांस में उपर्युक्त डायलॉग बोल दिया जाता है। डायलॉग सिर्फ 28 सेकंड में पूरी हो जाती है। कॉल +911725357986 नंबर से आता है, जिसका लोकेशन मोबाइल स्क्रीन पर चंडीगढ़, पंजाब बताया जाता है।
सवाल उठता है, जब संपूर्ण बिहार कोरोना संक्रमण और बाढ़ की विभीषिका के भीषण संकट से जूझ रहा है, तब यहां के राजनीतिक मूड को जानने की किसे जल्दबाजी है? जहां लोग रात और दिन अपनी जान बचाने के रास्ते तलाश रहे हों, वहां राजनीतिक सर्वेक्षण करने की जिद किस ने ठान रखी है।
दरअसल, निर्धारित शेड्यूल के मुताबिक बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव अपेक्षित हैं। सत्ता पर काबिज दलों और उनके नेताओं ने अंदर ही अंदर इसकी तैयारी प्रारंभ भी कर दी है। वहीं विपक्ष के दल और उनके नेता बिहार में जारी वर्तमान कोरोना व बाढ़ संकट के मद्देनजर विधानसभा चुनाव टालने की मांग कर रहे हैं।
कई स्तरों पर मीडिया के द्वारा भी बिहार की वर्तमान स्थिति को देखकर यहां चुनाव की बात को अव्यवहारिक ठहराते हुए इसके पक्ष में तर्क भी दिए जा रहे हैं। मीडिया ने शायद बिहार की जनता का मूड भांप लिया है। राज्य की जनता भी पहले अपनी जान बचाने में लगी है। राज्य की जो स्थिति है, उसने जनता को भी अपनी जान बचाने के लिए आत्मनिर्भर बनने को मजबूर किया है। क्योंकि सरकार पर से जनता का भरोसा अब उठ जाने की स्थिति बन चुकी है।
उधर, सरकार में शामिल दल अपनी जिम्मेदारियों को लेकर उदासीन चुनाव की तैयारियों में लगी है। सत्ताधारी दल गांव पंचायत से लेकर प्रखंड जिला और राज्य स्तर पर संगठन की स्क्रूटनी, पुनर्गठन, सर्वे, जनसंपर्क और वर्चुअल रैलियों पर आमादा हैं। इधर, जनता अपनी परेशानियों से लगातार जूझ रही है। जनता अपनी बदहाल स्थितियों को लेकर सरकारी तंत्र की उदासीनता से चिढ़ रही है, तो अपनी बला से!
राज्य की जनता जब बाढ़ और कोरोना से अपनी जान बचाने को लेकर फ़िक्रमंद हो अपनी नींद गंवा चुकी हो, तब उनके वर्तमान विधायक के भविष्य को लेकर उनसे किए जा रहे सवाल इन्हें प्रायोजित करने वाली एजेंसी या एजेंसियों की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को ही रेखांकित करते हैं। हालांकि इन सबके बीच, आखिरकार, यह सवाल अनुत्तरित ही रह जाता है कि कोरोना की आग में जलते और बाढ़ की अथाह जल राशि में डूबते बिहार में आखिर ऐसे सर्वेक्षण कौन और क्यों प्रायोजित कर रहा है?