अस्पतालों में काफी समय से भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों में सेप्टीसीमिया का बढ़ा खतरा
ब्यूरो रिपोर्ट : कहते हैं विपत्ति अकेले नहीं आती। अपने अनेक साथियों को भी साथ लाती है। कोरोना महामारी को लेकर भी बहुत कुछ यही कहा जा सकता है। वैसे तो राज्य के कोविड अस्पतालों में भरती संक्रमित मरीजों की तादाद में धीरे-धीरे कमी आती जा रही है, लेकिन फिर भी बचे हुए मरीजों में बहुतेरे ऐसे भी हैं जिन्हें अस्पतालों में भर्ती हुए काफी समय बीत चुके हैं। ऐसे मरीजों में पोस्ट कोविड अन्य तरह की बीमारियों का भी खतरा बना हुआ है।
उनके लगातार अस्पताल में रहने और वहां के माहौल की वजह से उन मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होकर कम होती जा रही है। ऐसा चिकित्सकों का कहना है। चिकित्सकों के मुताबिक इस स्थिति में वे कमजोर होते जा रहे हैं। ऐसे ही मरीजों में सेप्टीसीमिया नामक बीमारी की शिकायतें आ रही हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना संक्रमित मरीज जब शरीर से कमजोर होने लगते हैं तो स्वाभाविक रूप से उन की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी गिरावट आने लगती है। फलस्वरूप उन्हें हुआ संक्रमण उनके शरीर के किसी भी हिस्से से होता हुआ रक्त प्रवाह में चला जाता है जिसके बाद समस्या गंभीर हो जाती है। ऐसे मरीजों को अधिकतम सावधानी बरतने और मनोचिकित्सकों की आवश्यक काउंसलिंग की जरूरत होती है।
ज्ञात हो कि राज्य भर के विभिन्न अस्पतालों और वार्डों में कोरोना संक्रमित मरीज भर्ती हैं। इन मरीजों के इलाज में जुड़े डॉक्टरों का अनुभव है कि कोरोना से पीड़ित ऐसे मरीज जो अधिक समय से अस्पतालों में भर्ती हैं उन्हें दूसरी प्रकार की बीमारियों के होने की चिंता बढ़ रही है। डॉक्टरों के अनुसार कमजोर हो चुके मरीजों के शरीर से तथा संक्रमित फेफड़ों से होकर बैक्टीरिया रक्त प्रवाह के रास्ते से पूरे शरीर में फैल रहा है।
सेप्टीसीमिया से सुरक्षित रखने के लिए बीमारी संबंधी जरूरी जांच के बाद डॉक्टर उनका इलाज करते हैं। इससे जुड़ी सभी प्रकार की जांच की सुविधा अस्पतालों में उपलब्ध है। इस प्रकार की बीमारी का प्रभाव एक मरीज के साथ-साथ उनके परिजनों पर भी हो रहा है। ऐसे ही मामलों के लिए पोस्ट कोविड ओपीडी के अधिक से अधिक संचालन की जरूरत है।