बांका लाइव ब्यूरो : रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे प्रांतों में रोजगार के लिए गए प्रवासी श्रमिकों की वापसी के लिए सरकार ट्रेन चला रही है। बसों के भी इंतजाम किए गए हैं। लेकिन क्या ये इंतजाम काफी हैं? अगर हैं तो फिर दूसरे वैकल्पिक इंतजामों के सहारे अपार कष्ट झेल कर हजार- दो हजार किलोमीटर दूर से यहां आने वाले सैकड़ों प्रवासी श्रमिक आखिर कौन हैं? कौन रखेगा उनका रिकॉर्ड?
यह सच है कि ट्रेन और बसें में लगभग रोज यहां प्रवासी श्रमिकों को लेकर आ रही हैं। उनकी स्क्रीनिंग भी हो रही है। संदिग्ध पाए जाने पर कोरोना जांच के लिए उनके सैंपल भी भेजे जा रहे हैं। जांच रिपोर्ट के मुताबिक जिले में अब तक तीन दर्जन प्रवासी श्रमिक कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।
लेकिन यह भी सच है कि बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपनी निजी व्यवस्था से जैसे-तैसे अपार कष्ट झेल कर भी यहां पहुंच रहे हैं। वे हजारों रुपए का किराया भुगतान कर ट्रकों और लारियों के सहारे दूसरे प्रांतों से यहां पहुंच रहे हैं। लेकिन उनके ज्यादातर मामलों में ना तो उनकी स्क्रीनिंग हो पाती है और ना ही जांच के लिए उनके सैंपल ही भेजे जा पा रहे हैं। क्योंकि दरअसल उनका रिकॉर्ड रखना ही संभव नहीं हो पा रहा है।
ऐसे प्रवासी श्रमिक चोरी चुपके यहां पहुंच रहे हैं। मार्ग की बात छोड़ दीजिए, बांका जिले में प्रवेश के बाद भी कहीं उनसे पूछताछ होती भी कि नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। आज महाराष्ट्र के मुंबई और भिवंडी इलाके से करीब सौ की संख्या में एक ट्रक पर सवार होकर यहां पहुंचे प्रवासी श्रमिकों के मामले को देखकर तो यही लगता है।
सोमवार की दोपहर आधे दर्जन प्रवासी श्रमिक बांका शहर के पुरानी ठाकुरबाड़ी रोड से होकर जिला परिषद मार्केट के पास से गुजर रहे थे। अस्त-व्यस्त हाल में अपने बदन पर जरूरी सामान के गट्ठर बांधे पसीने से तरबतर ये श्रमिक शिवाजी चौक की ओर बढ़ते चले जा रहे थे। ना कोई सोशल डिस्टेंसिंग और ना ही कोई परहेज। बस चले जा रहे थे।
संयोगवश इसी वक्त इसी मार्ग से गुजर रहे बांका लाइव संवाददाता ने उन्हें इस हाल में देखकर उनकी स्थिति जाननी चाही। उन्होंने अपना नाम तो नहीं बताया, लेकिन कहा कि वे महाराष्ट्र के मुंबई और भिवंडी से आ रहे हैं। एक ट्रक पर सवार होकर वे यहां पहुंचे। करीब 100 से ज्यादा श्रमिक ट्रक पर सवार थे। प्रत्येक श्रमिक 3500 रुपये की दर से उन्हें किराया भुगतान करना पड़ा है।
जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी स्क्रीनिंग हुई या फिर उन्हें क्वॉरेंटाइन के लिए नहीं भेजा जा रहा, तो उन्होंने कहा कि बांका शहर के मसूरिया के भी लोग ट्रक से उतरे जो मुंबई और भिवंडी से आए हैं। स्क्रीनिंग या क्वॉरेंटाइन की बात वे नहीं जानते। वे लोग बांका और गोड्डा जिले की सीमा पर स्थित खटनई मोड़ तक जाएंगे। वहीं पास ही उनका गांव है।
ज्यादा कुछ बताने की बात से उन्होंने मना कर दिया। लेकिन अपने भावों से ही सही उन्होंने इतना तो जाहिर कर ही दिया कि उनकी परेशानियों को देखने सुनने वाला कोई नहीं है। यहां तक कि उनके यहां पहुंचने पर भी उनका हिसाब किताब रखने वाला कोई नहीं। ज्ञात हो कि कोरोना प्रसार के मामले में महाराष्ट्र देश में सर्वाधिक संवेदनशील जोन में से एक है।