बांका लाइव ब्यूरो : मानसून आज बांका में कहर बनकर बरपा। दो दिनों के सूखे मौसम और भीषण गर्मी के बाद गुरुवार को दोपहर जिले में तेज बारिश हुई। इस दौरान जमकर वज्रपात भी हुआ। वज्रपात की चपेट बांका जिले के 5 लोगों की जानें लेकर गयी। वज्रपात से मरने वालों में 3 बच्चे शामिल हैं। सभी मृतक मजदूर परिवारों के हैं।
सर्वाधिक त्रासद घटना जिले के रजौन प्रखंड अंतर्गत कठचातर गांव में हुई जहां गांव के समीप बैहियार में मवेशी चरा रहे 3 बच्चों की वज्रपात की चपेट में आकर मौत हो गयी। इस घटना में दो बच्चे भी घायल हुए।
बताया गया कि तीनों मृतक बच्चे एवं अन्य लोग कठचातर गांव के ही थे जो बैहियार में मवेशी चरा रहे थे। उसी दौरान बारिश शुरू हुई और ताबड़तोड़ वज्रपात भी। वज्रपात की चपेट में आने से धनंजय दास के 16 वर्षीय पुत्र शशिकांत दास, दीपक दास के 11 वर्षीय पुत्र रघुनंदन दास एवं समीर दास के 12 वर्षीय पुत्र वासुदेव दास की मौके पर ही मौत हो गई।
वज्रपात की इस घटना में इसी गांव का 16 वर्षीय कैलाश दास एवं 12 वर्षीय कृष्णा दास भी गंभीर रूप से घायल हो गया। ग्रामीणों ने तीनों मृत बच्चों को भी इन घायलों के साथ यह सोचकर अस्पताल पहुंचाया कि शायद वे बच्चे भी जीवित हों। लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। घायलों को प्रारंभिक उपचार के बाद बेहतर इलाज के लिए भागलपुर रेफर कर दिया गया।
उधर चांदन प्रखंड में सुईया क्षेत्र के कस्बा वसीला पंचायत अंतर्गत हरदेवडीह गांव में भी वज्रपात की चपेट में आकर 28 वर्षीय एक युवक दिलीप यादव की मौत हो गयी। जबकि बाराहाट थाना क्षेत्र अंतर्गत खड़ियारा गांव में 65 वर्षीय बुजुर्ग मोहम्मद रुस्तम की भी वज्रपात की चपेट में आकर मौत हो गयी। दोनों कृषि कार्य से बहियार गए थे जहां से वापसी के दौरान वज्रपात हुई और दोनों उनकी चपेट में आ गए।
वज्रपात ने आज की बारिश के दौरान जिले भर में कोहराम मचाया। वज्रपात की चपेट में आकर बांका जिले में आधे दर्जन लोग जख्मी भी हो गए। अनेक मवेशियों के भी वज्रपात से झुलस कर मारे जाने की खबर है। पिछले करीब डेढ़ दशक से बांका जिले में प्रायः हर वर्ष मानसून के आरंभिक दौर में वज्रपात मौत का अभिशाप सिद्ध होता है।
वज्रपात की चपेट में आकर हर वर्ष जिले के दर्जनों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। खास बात है कि वज्रपात से मरने वालों में ज्यादातर मजदूर एवं कामगार वर्ग के होते हैं। किसी भी हाल में कमाने के लिए घर से बाहर निकलना उनकी मजबूरी होती है। खरीफ मौसम में खेतों को भी उनकी जरूरत होती है। लेकिन कई बार प्रकृति की मार उन पर भारी पड़ती है। वज्रपात से गुरुवार को जिले में हुई मौतों ने भी एक बार फिर से इस तथ्य को रेखांकित किया है।