बांका लाइव ब्यूरो : अमूमन लोग नहीं जानते कि बंदर जंगली जानवर हैं या पालतू! दरअसल इनकी इसी अनिश्चित प्रवृत्ति का नुकसान कई बार मानव समाज को भी उठाना पड़ जाता है। बांका जिले के सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में बसे एक गांव के लोग पिछले कुछ दिनों से इन्हीं सिरफिरे और उपद्रवी बंदरों के आतंक से परेशान हैं। बंदरों ने इस गांव के लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है। लोग अपने घरों से बाहर तक नहीं निकल पा रहे। बंदरों का यह मनचला गिरोह गांव की दो दर्जन से ज्यादा महिलाओं को काटकर जख्मी बना चुका है।

बांका जिले के चांदन प्रखंड अंतर्गत बिरनिया पंचायत में गोपडीह प्रकृति की गोद में बसा एक गांव है। इस गांव के आसपास जंगलों और पहाड़ों का मनोरम वातावरण है। गांव के आसपास की पहाड़ियों और जंगलों में बड़े पैमाने पर बंदर पाए जाते हैं। इन्हीं जंगलों और पहाड़ियों से भटक कर बंदरों का एक झुंड गांव की ओर आ गया है, जो पिछले कई दिनों से उत्पात मचा रहा है।
बंदरों का झुंड गांव में लगी सब्जियों और फलों को तो बर्बाद कर ही रहा है, लोगों के घरों तक में प्रवेश कर उन्हें अपने दांत और नाखून का शिकार बना रहे हैं। गांव में इन बंदरों ने आतंक मचा रखा है। बंदरों के काट खाने से पिछले तीन-चार दिनों के भीतर गांव की करीब दो दर्जन महिलाएं और बच्चे जख्मी हो चुके हैं। घरों के बाहर तो बंदरों का आतंक और उधम जारी ही है, वे घरों के अंदर भी प्रवेश कर लोगों खासकर महिलाओं और बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं।
बंदरों के आतंक से इस गांव के लोग इतने परेशान हैं कि उनमें खौफ घर कर गया है। गांव के लोगों को घर से बाहर निकलने के लिए भी लाठी का साथ लेना पड़ता है। बगैर लाठी के कोई घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर रहा। जिन्हें घर से बाहर निकलना होता है तो हाथ में डंडा लेकर ही निकल पाते हैं।
घरों के बड़े- बूढ़े बच्चों पर खास नजर रखने को विवश हैं, ताकि वे बंदरों के आतंक के शिकार ना हो जाएं। बच्चों के खेलने के लिए बाहर निकलने पर भी इन बंदरों ने मानो अघोषित कर्फ्यू लगा रखा है। गांव के कई लोगों ने इस बात की शिकायत की कि इन उत्पाती बंदरों से निजात पाने का कोई रास्ता उन्हें नहीं सूझ रहा और ना ही इसमें उन्हें कहीं से कोई मदद मिल रही।