बिहार के बांका जिले का ऐतिहासिक गांव भदरिया उर्फ भद्रनगर उर्फ भद्दई पिछले करीब एक माह से सुर्खियों में है। मीडिया में इस गांव से जुड़ी एक विशिष्ट खबर छपने के बाद जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक सक्रिय है। पुरातत्व एवं कला संस्कृति विभाग ने भी इस गांव और आसपास के क्षेत्र की ऐतिहासिकता को लेकर खासी दिलचस्पी दिखाई है। फिलहाल माहौल यह है यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो जल्द ही यह गांव और आसपास का इलाका पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र होगा।
मनोज उपाध्याय/
मामला यह है कि करीब एक माह पूर्व छठ महापर्व के दौरान घाटों की साफ-सफाई के लिए भदरिया गांव के कुछ युवक इसके सटे पूरब बहने वाली पौराणिक चांदन नदी के तट पर पहुंचे थे। घाटों के निर्माण के दौरान उन युवाओं ने नदी तल में एक खास स्ट्रक्चर देखा तो वे चौंक गए। स्ट्रक्चर एक पौराणिक नगर सभ्यता की शक्ल में था। बड़ी-बड़ी ईंटों से निर्मित लंबी लंबी दीवारें और कमरे का स्ट्रक्चर नदी तल पर साफ दिख रहा था। कई पुरातात्विक अवशेष जैसे प्राचीन बर्तन, खिलौने, मृदभांड आदि भी वहां पाए गए।
युवकों ने भागकर इसकी सूचना गांव वालों को दी। कुछ ही देर में यह जानकारी आसपास के गांवों तक फैल गई। सूचना जिला प्रशासन को भी मिली। इसके बाद तो जैसे इस मामले को लेकर बिजली दौड़ गई। भदरिया गांव के पास चांदन नदी में मेला लग गया। हजारों लोग जहां इसे देखने पहुंचे, वहीं जिला प्रशासन के नुमाइंदों ने भी मौके पर पहुंचकर चर्चित स्थल की घेराबंदी कराते हुए खोज स्थल की सुरक्षा के लिहाज से वहां लोगों के आने-जाने पर रोक लगा दी। सुरक्षा के लिए पहरा बिठा दिया गया। इस मामले की सूचना राज्य सरकार तक पहुंचाई गई।
यह खबर तमाम प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल समाचार माध्यमों में जोर शोर से प्रकाशित हुई तो पुरातत्व एवं कला संस्कृति विभाग ने भी संज्ञान लिया और उनकी टीमें धड़ाधड़ परीक्षण के लिए यहां पहुंचने लगीं। कई प्रोफेशनल पुरातत्वविदों ने भी इस मामले की पड़ताल की और चर्चित स्ट्रक्चर का विश्लेषण करते हुए यहां करीब 3 हजार से 5 हजार वर्ष पूर्व एक विशिष्ट पौराणिक सभ्यता होने का अनुमान व्यक्त किया है। खबरों को और गति मिलने के बाद जहां जिला प्रशासन ने भी इलाके में खोज की पहल शुरू की, वहीं राज्य सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने भी 11 दिसंबर के लिए भदरिया गांव का अपना कार्यक्रम फिक्स कर दिया।
ज्ञात हो कि भदरिया गांव बांका जिला अंतर्गत अमरपुर प्रखंड क्षेत्र के पूर्वी हिस्से में चांदन नदी के किनारे अवस्थित है। बालू माफियाओं ने इस क्षेत्र में चांदन नदी की बेतरतीब और बेरहम खुदाई की है। नदी का लेवल काफी नीचे उतर चुका है। जमीन के अंदर की चीज ऊपर आ चुकी है। बांका जिला मुख्यालय से यह गांव और चर्चित स्थल करीब 25 किमी की दूरी पर है। इस गांव और नदी तटकी चर्चा भगवान बुद्ध के जीवन काल के दौरान के ग्रंथों में भी पाई गई है। बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक स्वयं भगवान बुद्ध अपनी प्रिय शिष्या विशाखा से मिलने भदरिया गांव में आए थे और यहां कुछ दिन रुक कर धर्म प्रचार भी किया था। कहते हैं कि विशाखा इसी गांव की रहने वाली थी। तब इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म मानने वालों की अच्छी खासी तादाद थी।
पुरातत्व के जानकारों के मुताबिक चांदन नदी में मिला स्ट्रक्चर भगवान बुद्ध के काल का हो सकता है। यह भी संभव है कि यह सभ्यता करीब 5 हजार वर्ष पुरानी हो! क्योंकि यहां मिले कुछ बर्तन, खिलौने और मृदभांड करीब पांच हजार वर्ष पूर्व की सभ्यता में प्रयोग किए जाने वाले खिलौने, बर्तनों और मृदभांडों से मेल खाते हैं। अमरपुर क्षेत्र वैसे भी काफी प्राचीन पृष्ठभूमि वाला माना जाता है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र अमरावती के नाम से जाना जाता था। प्राचीन झरना पहाड़ी इसी क्षेत्र में अवस्थित है, जहां गर्म जल का एक पौराणिक कुंड भी अवस्थित है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यह पहाड़ी महाराजा जनक के गुरु महर्षि अष्टावक्र की तपोभूमि रही है जिनके नाम का अपभ्रंश होते होते यह क्षेत्र बांका के नाम से आज जाना जाता है।