बांका लाइव डेस्क : भारतीय भूगोल में कायम ऋतु परंपरा के मुताबिक छः ऋतु होते हैं- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और बसंत। प्रत्येक ऋतु 2 महीने का माना जाता है। बरसात के 2 महीने आषाढ़ और सावन के बाद भाद्रपद एवं आश्विन मास को शरद ऋतु माना जाता है। यही वजह है कि आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। आश्विन पूर्णिमा को कौमुदी, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।
ज्योतिषीय आकलन के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी से निकटतम दूरी पर होता है। इस रात चंद्रमा अपने औसत आकार से बड़ा और काफी चमकीला दिखता है। मान्यता है की संपूर्ण वर्ष भर में सिर्फ शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा अखंड फलदाई होता है। वैसे तो सनातन वांग्मय के मुताबिक साल के सभी 12 महीनों की पूर्णिमा तिथि का अपना खास महत्व है। लेकिन शरद पूर्णिमा को इन सब में सर्वाधिक पुण्य पर्व एवं फलदाई माना जाता है।
यही वजह है कि शरद पूर्णिमा एक पर्व के रूप में स्थापित है। देश भर में शरद पूर्णिमा का पर्व अलग-अलग रीति रिवाज से मनाया जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के बाद क्षीर भोजन पर चांद की दूधिया किरण पड़ने से फिर भोजन अमृत गुण संपन्न हो जाता है। इसी सामान्य मान्यता के आधार पर शरद पूर्णिमा की रात्रि में चांद की दूधिया रोशनी में क्षीर भोजन करने की देश के विभिन्न हिस्सों में एक दीर्घ और विस्तृत परंपरा है।
शरद पूर्णिमा : तिथि एवं पूजा मुहूर्त
इस वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा 2 दिन मानी जा रही है। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक 19 अक्टूबर की शाम से शुरू होकर पूर्णिमा की तिथि 20 अक्टूबर की शाम तक है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार पूर्णिमा की तिथि आज यानी 19 अक्टूबर को शाम 7:03 बजे शुरू होगी और 20 अक्टूबर की रात 8:26 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के मुताबिक शरद पूर्णिमा का व्रत 20 अक्टूबर यानी बुधवार के दिन कल रखा जाएगा। पंडितों के मुताबिक शरद पूर्णिमा का खीर भोजन उत्सव आज या कल दोनों दिन मनाया जा सकता है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शरद पूर्णिमा की रात चंद्र किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन महालक्ष्मी की पूजा (बांग्ला समाज में लक्खी पूजा) का भी शुभ पर्व होता है। शरद पूर्णिमा की रात चांद की दूधिया रोशनी में दूध की खीर बनाकर रखी जाती है और बाद में प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण किया जाता है। जन मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चांद की पवित्र रोशनी में अमृत योग पर खीर का प्रसाद ग्रहण करने से शरीर को तमाम तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और लोग स्वस्थ हो जाते हैं।
शरद पूर्णिमा : व्रत एवं पूजा विधि
शरद पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के पूर्व स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात समस्त देवी देवताओं का आह्वान कर वस्त्र, आसन, अक्षत, पुष्प, धूप- दीप, नैवेद्य, सुपारी आदि अर्पित करते हुए उनकी पूजा-अर्चना करें। संध्या काल में दूध की खीर में घी मिलाकर अर्धरात्रि के समय भगवान को भोग लगाएं। रात्रि में चंद्रोदय के बाद भगवान चंद्र देव की पूजा आराधना करें एवं उन्हें खीर का भोग निवेदित करें। रात्रि के समय खीर से भरे बर्तन को चंद्रमा की दूधिया रोशनी में रखें और फिर प्रसाद के रूप में इसका वितरण करें एवं स्वयं भी ग्रहण करें। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान कार्तिकेय की पूजा का भी विधान है।