अंकित गौतम

बांका

‘बाबू देखो ना, क्या बोल रहा है दुकानदार, मेरी तो समझ के बाहर है..!’

संस्मरण/ अमन ईरावई रुपयालु… जानता हूं, ये शब्द आम समझ के बाहर हैं। दरअसल हमारी जो मातृभाषा होती है न, आमतौर…

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