बांका

अनेक सुदृढ़ हाथों में नेतृत्व रहने के बावजूद क्यों नहीं लग पाये बांका के विकास और समृद्धि को पंख..?

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महर्षि अष्टावक्र के ज्ञान सागर की गहराई और उत्तुंग मंदार शिखर की ऊंचाई के गुरुत्व से गौरवान्वित महान ‘बांका भूमि’ का अतीत जितना समृद्ध और गौरवशाली रहा है, वर्तमान उतना क्लिष्ठ और पीड़ादायक है. इस क्षेत्र के त्रासद वर्तमान के पीछे एक खास और महत्वपूर्ण वजह यह भी रही है कि इसे अपने दुख- दर्द को बयान करने के लिए शब्द और आवाज नहीं मिले.

पिछले कई दशकों से उर्ध्वगमन का दंश झेल रहे इस क्षेत्र का नेतृत्व सुदृढ़ हाथों में रहने के बावजूद यहां की विकास और समृद्धि को पंख इसलिए नहीं लग पाए क्योंकि यहां की मिट्टी से उन्होंने आमतौर पर अंतरंग लगाव ही महसूस नहीं किया. ध्यातव्य है कि देश के सर्वोच्च विधायी संस्थान संसद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व आजादी के बाद से अब तक लगभग बाहरी हाथों में रहा. राज्य विधानमंडल में भी एकाध बार के अलावा यहां का प्रतिनिधित्व कभी मजबूत हाथों को नहीं मिला.

करीब 3 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले लगभग 20 लाख की आबादी वाले बांका जिले का आधुनिक प्रशासनिक इतिहास वर्ष 1853 से है, जब तत्कालीन वनहरा एवं ब्रह्मपुर निजामतों को मिलाकर एक संयुक्त प्रशासनिक इकाई बांका सब- डिवीजन का गठन किया गया. 21 फरवरी 1991 को राज्य सरकार ने भागलपुर जिला अंतर्गत बांका सब-डिवीजन इकाई को पृथक जिले का दर्जा प्रदान किया. इस प्रशासनिक सुधार के पीछे राज्य सरकार का तर्क था कि इससे इस क्षेत्र में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा.

लेकिन जिला बनने के 26 वर्षों बाद भी क्या ऐसा यहां हो पाया है? यहां इस सवाल के जवाब में सिर्फ एक सीधा और सपाट जवाब है- कहीं से नहीं. स्थिति का सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिला बनने के ढाई दशकों से भी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद बांका में जिलाधिकारी और आरक्षी अधीक्षक तक के लिए अपना आवास नहीं बन पाया है. जिले में बुनियादी ढांचागत विकास के नाम पर हर वर्ष अरबों रुपए की राशि व्यय हो रही है. लेकिन ठेकेदारी और विभागीय भ्रष्टाचार की वजह से ये राशि जिले में विकास की बजाए अधिकारियों और ठेकेदारों की तिजोरी भरने के काम आ रही है.

हर तरफ भ्रष्टाचार और विभागीय लूट का बोलबाला है. कानून और व्यवस्था की स्थिति क्या है, यह कहने की जरूरत नहीं. कहते हैं, बांका जिले की भूमि रत्नगर्भा है. लेकिन ये बातें अब सिर्फ कहने भर के लिए रह गई हैं. यहां के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों में शायद इच्छाशक्ति की कमी है. तभी तो यह जिला सिर्फ आधिकारिक प्रशासनिक इकाई भर बन कर रह गया है. यहां शासक और शासित की संस्कृति कायम हो गई है. राजनीतिक दलों की गतिविधियां सिर्फ पार्टीगत कार्यक्रमों तक सीमित रह गई हैं. आम लोग कुछ बोल नहीं पाते और जिन्हें बोलने की क्षमता है, उन्हें बोलने की जरूरत ही महसूस नहीं होती. ऐसे में एक सशक्त आवाज की जरूरत इस क्षेत्र को वर्षों से थी.

इसी आवाज को हर्फ़ देने का संकल्प Banka Live ने लिया है. इसी संकल्प के साथ Banka Live आपकी सेवा में तत्पर है. आपका सहयोग और समर्थन पाकर Banka Live बांका और आसपास के क्षेत्र की दशा और दिशा को सकारात्मक स्वर देने का संकल्प व्यक्त करता है. Banka Live एक डिजिटल ‘समाचार- विचार मंच’ है, जहां हम एक तरफ आपको दिन- प्रतिदिन की ताजा खबरों और नवीनतम घटनाक्रमों से अवगत कराते रहेंगे, वहीं खबरों के पीछे की पृष्ठभूमि और इन्हीं खबरों के निचोड़ से पैदा होने वाली ‘हकीकत और अफ़साने’ से भी हम आपको रू-ब-रू कराते रहेंगे…. तो बने रहिए हमारे साथ…

मनोज उपाध्याय

Source:  Banka Live


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