बांका लाइव (चुनाव डेस्क) : मुद्राराक्षस जो न कराए! मुद्राराक्षस मतलब माल मटेरियल! माल मटेरियल की लालच में मुद्राराक्षस का सिपाही बन गए कई स्वयंभू समाजसेवक इस बार के विधानसभा चुनावों में यहां चर्चा का विषय बन रहे हैं। हालांकि इन चर्चाओं की परवाह किसे है! चुनाव के इस दौर में मुद्राराक्षस के पीछे हो लिए ऐसे स्वयंभू समाजसेवकों ने तो बस, किशोर कुमार के गाए इस गीत को ही आत्मसात कर लिया है- ‘…लोगों का काम है कहना..!’
ऐसे लोग एक नहीं है जिनकी चर्चा की जाए। चुनाव को अपने लिए अवसर बनाने वाले महान समाज सेवकों का तबका पहले भी विभिन्न चुनावों के अवसर पर सुर्खियों में रहे हैं। हालांकि इस बार इनकी तादाद कुछ ज्यादा ही है। नीतिगत सिद्धांतों और दलीय प्रतिबद्धताओं को ताक पर रखकर इस बार भी चुनाव के दौरान वे अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ बन गए हैं। कुछ माह पूर्व तक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी खास दल और उसके नेता के लिए कसीदे काढ़ने वाले समाज सेवक भी इसी धारा में बह गए हैं।
अर्थशास्त्र के नियमों के अनुरूप प्रत्याशियों के एफिडेविट में उल्लिखित संपत्ति के डिक्लेरेशन का अध्ययन करते हुए शायद ऐसे स्वयंभू समाजसेवकों ने अपने लिए उपयुक्त मंच और जगह सुरक्षित कर ली है। बस कुछ ही दिनों का तो मामला है! लोग चर्चा करते हैं तो करें! सवाल उठाते हैं तो उठाएं! परवाह नहीं! चुनाव के बाद सभी सब कुछ भूल जाएंगे और तब तक अपना काम हो गया होगा!
मुद्राराक्षस के पीछे हो लेने वाले ऐसे स्वयंभू समाज सेवकों और जैसे तैसे समीकरण बताकर विजय दिलाने का सब्जबाग दिखाने वाले सोटरों की इसी अर्थ नीति की वजह से बांका सहित जिले के सभी 5 विधानसभा क्षेत्रों के ब्रांडेड प्रत्याशियों की बजाए प्रोपेगेंडा प्रत्याशियों के दफ्तरों में भीड़ लग रही है। प्रत्याशी भी इनके शब्द जाल में उलझ कर अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो गदगद हो रहे हैं। अब चुनाव के मैदान ए जंग में जमीनी हकीकत क्या है, उन्हें कौन समझाए!