अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर तालिबान के कब्जे और उनकी सरकार बनाने की कोशिशों के बीच हमारे देश की सोशल मीडिया में चल रहा वाद-विवाद मूर्खतापूर्ण और शर्मनाक स्तर पर पहुंच गया है। कट्टर इस्लाम के समर्थक कुछ मुट्ठी भर लोगों को लगता है कि सड़कों पर राकेट लांचर और ए.के 47 लहराते हुए आतंकियों में इस्लाम को उसका एक और मसीहा मिल गया है।
हत्यारों को पैग़ाम-ए-मुहब्बत भेजे जा रहे है। कट्टर हिंदुओं द्वारा इस ऐतिहासिक घटना के परिपेक्ष्य में आतंक पर एक सार्थक बहस चलाने के बजाय इसे मूर्खतापूर्ण तरीके से हिन्दू बनाम मुस्लिम विवाद में तब्दील कर दिया जा रहा है। ऐसे जाहिलाना बयानों से अफगानिस्तान या तालिबान को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। हां, हमारे अपने देश में आने वाले चुनावों की पृष्ठभूमि में सांप्रदायिक गोलबंदी कुछ और तेज ज़रूर होने लगी है।
जटिल, संवेदनशील मुद्दों पर बिना सोचे-समझे कुछ भी लिखना घातक हो सकता है। दुनिया की ज्यादातर सरकारों की तरह देखिए और इंतज़ार करिए कि अगले कुछ दिनों या महीनों में घटनाक्रम क्या शक्ल लेता है। आपके पोस्ट पढ़कर कोई तालिबानी न तो ईनाम लेकर आपके दरवाजे पर आएगा और न ही आपके डर से अफगानिस्तान छोड़कर कहीं और भाग जाने वाला है। बस इतना है कि आपके बेहूदा बयानों से आपके अपने ही देश में आग लग जा सकती है।