राजेंद्र प्रसाद सिंह /
नदी की धारा तो मोड़ दी गई , लेकिन विस्तृत खोदाई का इंतजार लंबा होने से लोगों का धैर्य और उनकी उम्मीदें भी डगमगाने लगी हैं। यही नहीं, अचानक मिले प्राचीन स्ट्रक्चर एवं लगे हाथों मुख्यमंत्री के पुरास्थल के अवलोकन से जो उत्साह भदरियावासियों के चेहरे पर चस्पां हुआ था, वह खोदाई में हो रहे विलंब से फीका पड़ने लगा है।
आशंका की एक वजह महाभारतकालीन कर्णगढ़ की आधी अधूरी खोदाई है, जिसमें ऐसी -ऐसी बहुमूल्य पुरासामग्रियां मिली थीं, जिन्हें भी सहेज कर नहीं रखा गया। उन सामग्रियों को देख पाना अंगवासियों के लिए अब किसी सपने जैसा है। उस बात को याद कर ही शायद भदरिया सहित तमाम अंगवासियों के चेहरों पर मायूसी की लकीरें गहरी होती जा रही हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक नई बात के पूर्व संपादक एवं इतिहास व पुरातत्व के जानकार हैं)