‘बड़ी मेहरबानी, दोस्त। हम इसे तोड़कर पहले पांच-दस गज ज़मीन बनाएंगे और फिर इसपर अपनी सेना तैनात कर देंगे। आप विश्वगुरु लोग क्या जानो, दूसरों की ज़मीन पर झंडे गाड़ने का सुख ही कुछ और होता है!’
ध्रुव गुप्त/ लघु व्यंग्य
‘मोदी जी, इतने बड़े-बड़े पत्थरों का क्या इस्तेमाल करते हो आपलोग ?’
‘पिंग भाई, वैसे तो हम इसे गुलेल में डालकर कौवे भगाते हैं, लेकिन आपको पसंद है तो मैं इसे गिफ्ट पैक करा देता हूं। आप क्या करोगे इसका ?’
‘बड़ी मेहरबानी, दोस्त। हम इसे तोड़कर पहले पांच-दस गज ज़मीन बनाएंगे और फिर इसपर अपनी सेना तैनात कर देंगे। आप विश्वगुरु लोग क्या जानो, दूसरों की ज़मीन पर झंडे गाड़ने का सुख ही कुछ और होता है!’
(लेखक अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी हैं)