ब्यूरो रिपोर्ट : सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को कहा है कि अब समय आ गया है कि राजद्रोह की सीमा को तय किया जाए l आंध्र-प्रदेश के दो टीवी चैनलों पर राजद्रोह का मामला लगाए जाने के बाद इससे जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने आदेश जारी कर कहा कि इन चैनलों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
सर्वोच्च अदालत के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ वाली पीठ ने कहा कि आंध्र-प्रदेश के जिन दो टीवी चैनलों पर राजद्रोह का मामला लगाया गया है , और जिस कारण से लगाया गया है उनपर राजद्रोह का आरोप लगाया जाना उनकी आवाज को दबाना है l इसके साथ ही अब हमें राजद्रोह की सीमा तय करनी चाहिए।
अदालत ने कहा के “राजद्रोह उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जो वाकई सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए हिंसात्मक तरीके से की गई कोशिश हो।” वर्तमान समय में राजद्रोह के प्रावधानों का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है और कई बार तो विरोधियों का मुँह बंद कराने या आलोचकों को डराने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा रहा है।
2016 से लेकर अबतक ऐसे दर्जनों राजद्रोह के मामले हैं जो बिना किसी आधार के थोपे गए हैं l लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि साल 2016 से अब तक सिर्फ 4 लोगों पर ही पुलिस राजद्रोह का आरोप अदालत के सामने सिद्ध कर पाई है। पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा की “राजद्रोह का इस्तेमाल लोगों की आवाज़ को सख़्ती से कुचलने के लिए किया जा रहा है। राजद्रोह देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों पर लगाया जाता था। “