पर्यटन स्थल मंदार पर सैलानियों के लिए नहीं है कोई सुविधा- सुरक्षा इंतजाम
बांका LIVE डेस्क : पूर्व बिहार के सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल मंदार पर्वत और इसके आसपास सैलानियों के लिए पर्याप्त तो दूर, नाममात्र भी सुविधा और सुरक्षा इंतजाम नहीं हैं. यहां आने वाले सैलानी अपनी जोखिम और परेशानियों की शर्त पर यहां आते हैं और जिल्लत झेल कर वापस लौट जाते हैं. उन्हें अगर सुकून मिलता है तो बस मंदार और पापहरणी की पौराणिक विरासत से नजरें जुड़ा कर, वरना यहां आने वाले सैलानी तो मंदार के प्रवेश द्वार पर ही प्यास से छटपटा कर यहां दोबारा आने से तौबा कर लें.
बांका जिला अंतर्गत जिला मुख्यालय से सिर्फ 17 किलोमीटर दूर पौराणिक मंदार पर्वत और इसकी उपत्यका में स्थित है पापहरणी सरोवर. यहां असंख्य पौराणिक अवशेष एवं ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिन्हें देखने, समझने और अध्ययन करने देशभर से हर वर्ष लाखों सैलानी आते हैं. मंदार के बारे में पौराणिक मान्यता है कि देवताओं और असुरों ने इसी पर्वत को मथनी बनाकर सागर मंथन किया था, जिसमें 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी. मान्यता यह भी है कि असुरों का दंभ और उत्पात काफी बढ़ जाने पर भगवान विष्णु ने इसी स्थल पर महादानव मधु का विनाश किया था और भगवान मधुसूदन कहलाए. मंदार पर्वत को एक विराट शिवलिंग भी माना जाता है. कहते हैं भगवान शिव का यह क्षेत्र मूल निवास है और सागर मंथन के बाद निकले हलाहल का पान उन्होंने यहीं किया था.
मंदार और इसके आसपास विष्णुपद मंदिर, भगवान वासुपूज्य मंदिर, कामधेनु मंदिर, शंख कुंड, सीताकुंड, नरसिंह गुफा, पातालगंगा, लखदीपा मंदिर, पापहरणी सरोवर और न जाने कितने अवशेष भरे पड़े हैं, जिनका इतिहास और पुराणों से रिश्ता है. यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं. इनमें सैलानियों की तादाद बहुतायत में होती है. सनातन धर्म के साथ-साथ जैन और वैष्णव सफा समुदाय के लोग भी यहां लाखों की तादात में हर वर्ष पहुंचते हैं. यह स्थल तीनों धर्मों और समुदायों का बड़ा आध्यात्मिक केंद्र है.
लेकिन दुर्भाग्य से प्रशासन की उपेक्षा और सरकार की अनदेखी की वजह से यहां पीने के लिए पानी तक का कोई समुचित इंतजाम नहीं है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा मंदार के नीचे पापहरणी के आसपास आधे दर्जन चापाकल लगाए गए थे. इनमें से एक को छोड़कर सभी खराब पड़े हैं. यह एकमात्र चापाकल यहां आने वाले सैलानियों के लिए पर्याप्त नहीं है. वे ₹20 प्रति लीटर की दर से पानी खरीद कर प्यास बुझाने के लिए विवश हैं. सर्वाधिक त्रासद स्थिति पहाड़ पर चढ़ने वाले सैलानियों की होती है. वहां एकमात्र कुआं है जिसका पानी गहराई से खींच कर पीने की बजाए लोग नीचे से बोतलबंद पानी ले जाना ज्यादा श्रेयस्कर मानते हैं.
मंदार और इसके आसपास सुरक्षा के इंतजाम भी नदारत हैं. कभी यहां पुलिस पिकेट हुआ करता था. पर्याप्त सुरक्षा बल भी होते थे. लेकिन आज यहां सैलानी अपनी हिफाजत आप करने पर विवश हैं. लिहाजा कई बार उन्हें छिनतई और छेड़खानी जैसी वारदातों का सामना करना पड़ता है. पिछले सप्ताह यहां छिनतई की कई घटनाएं हुईं. मंदार और आस-पास शौचालय, स्नानागार या अतिथि निवास जैसी सुविधाओं का भी घोर अभाव है. ऐसे में सैलानियों को क्या परेशानी होती है, इसे उनसे बेहतर और कौन बयां कर सकता है. सरकारी तंत्र हमेशा मंदार को राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर उभारने की घोषणा तो करता है, लेकिन इस दिशा में उनकी पहल लगभग नदारत है.